श्रीशबरिगिरीशाष्टकम्
यजनसुपूजितयोगिवरार्चित यादुविनाशक योगतनो
यतिवरकल्पितयन्त्रकृतासनयक्षवरार्पितपुष्पतनो ।
यमनियमासनयोगिहृदासनपापनिवारणकालतनो
जय जय हे शबरीगिरिमन्दिरसुन्दर पालय मामनिशम् ॥ १॥
मकरमहोत्सव मङ्गलदायक भूतगणावृत देवतनो
मधुरिपुमन्मथमारकमानित दीक्षितमानस मान्यतनो ।
मदगजसेवित मञ्जुलनादकवाद्यसुघोषितमोदतनो
जय जय हे शबरीगिरिमन्दिरसुन्दर पालय मामनिशम् ॥ २॥
जय जय हे शबरीगिरिनायक साधय चिन्तितमिष्टतनो
कलिवरदोत्तम कोमलकुन्तल कञ्जसुमावलिकान्ततनो ।
कलिवरसंस्थित कालभयार्दित भक्तजनावनतुष्टमते
जय जय हे शबरीगिरिमन्दिरसुन्दर पालय मामनिशम् ॥ ३॥
निशिसुरपूजनमङ्गलवादनमाल्यविभूषणमोदमते
सुरयुवतीकृतवन्दन नर्तननन्दितमानस मञ्जुतनो ।
कलिमनुजाद्भुत कल्पितकोमलनामसुकीर्तनमोदतनो
जय जय हे शबरीगिरिमन्दिरसुन्दर पालय मामनिशम् ॥ ४॥
अपरिमिताद्भुतलील जगत्परिपाल निजालयचारुतनो
कलिजनपालन सङ्कटवारण पापजनावनलब्धतनो ।
प्रतिदिवसागतदेववरार्चित साधुमुखागतकीर्तितनो
जय जय हे शबरीगिरिमन्दिरसुन्दर पालय मामनिशम् ॥ ५॥
कलिमलकालन कञ्जविलोचन कुन्दसुमानन कान्ततनो
बहुजनमानसकामसुपूरण नामजपोत्तम मन्त्रतनो ।
निजगिरिदर्शनयातुजनार्पितपुत्रधनादिकधर्मतनो
जय जय हे शबरीगिरिमन्दिरसुन्दर पालय मामनिशम् ॥ ६॥
शतमुखपालक शान्तिविदायक शत्रुविनाशक शुद्धतनो
तरुनिकरालय दीनकृपालय तापसमानस दीप्ततनो ।
हरिहरसम्भव पद्मसमुद्भव वासवशम्भवसेव्यतनो
जय जय हे शबरीगिरिमन्दिरसुन्दर पालय मामनिशम् ॥ ७॥
ममकुलदैवत मत्पितृपूजित माधवलालितमञ्जुमते
मुनिजनसंस्तुत मुक्तिविदायक शङ्करपालित शान्तमते ।
जगदभयङ्कर जन्मफलप्रद चन्दनचर्चितचन्द्ररुचे
जय जय हे शबरीगिरिमन्दिरसुन्दर पालय मामनिशम् ॥ ८॥
अमलमनन्तपदान्वितरामसुदीक्षित सत्कविपद्यमिदं
शिवशबरीगिरिमन्दिरसंस्थिततोषदमिष्टदमार्तिहरम् ।
पठति शृणोति च भक्तियुतो यदि भाग्यसमृद्धिमथो लभते
जय जय हे शबरीगिरिमन्दिरसुन्दर पालय मामनिशम् ॥ ९॥
इति श्री शबरीगिरिशाष्टकं सम्पूर्णम् ॥
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