श्रीशिवशङ्करस्तोत्रम् अथवा यमभयनिवारणस्तोत्रम्

श्रीशिवशङ्करस्तोत्रम् अथवा यमभयनिवारणस्तोत्रम्

अतिभीषणकटुभाषणयमकिङ्किरपटली कृतताडनपरिपीडनमरणागमसमये । उमया सह मम चेतसि यमशासन निवसन् शिवशङ्कर शिवशङ्कर हर मे हर दुरितम् ॥ १॥ असदिन्द्रियविषयोदयसुखसात्कृतसुकृतेः परदूषणपरिमोक्षणकृतपातकविकृतेः । शमनाननभवकानननिरतेर्भव शरणं शिवशङ्कर शिवशङ्कर हर मे हर दुरितम् ॥ २॥ विषयाभिधबडिशायुधपिशितायितसुखतो मकरायितमतिसन्ततिकृतसाहसविपदम् । परमालय परिपालय परितापितमनिशं शिवशङ्कर शिवशङ्कर हर मे हर दुरितम् ॥ ३॥ दयिता मम दुहिता मम जननी मम जनको मम कल्पितमतिसन्ततिमरुभूमिषु निरतम् । गिरिजासुख जनितासुख वसतिं कुरु सुखिनं शिवशङ्कर शिवशङ्कर हर मे हर दुरितम् ॥ ४॥ जनिनाशन मृतिमोचन शिवपूजननिरतेः अभितो दृशमिदमीदृशमहमावह इति हा । गजकच्छप जनितश्रम विमलीकुरु सुमतिं शिवशङ्कर शिवशङ्कर हर मे हर दुरितम् ॥ ५॥ त्वयि तिष्ठति सकलस्थितिकरुणात्मनि हृदये वसुमार्गण कृपणेक्षण मनसा शिव विमुखम् । अकृताह्निकमसुपोषकमवतात् गिरिसुतया शिवशङ्कर शिवशङ्कर हर मे हर दुरितम् ॥ ६॥ पितराविति सुखदाविति शिश्नुना कृतहृदयौ शिवया सह भयके हृदि जनितं तव सुकृतम् । इति मे शिव हृदयं भव भवतात्तव दयया शिवशङ्कर शिवशङ्कर हर मे हर दुरितम् ॥ ७॥ शरणागतभरणाश्रित करुणामृतजलधे शरणं तव चरणौ शिव मम संसृतिवसतेः । परिचिन्मय जगदामयभिषजे नतिरावतात् शिवशङ्कर शिवशङ्कर हर मे हर दुरितम् ॥ ८॥ विविधाधिभिरतिभीतिरकृताधिकसुकृतं शतकोटिषु नरकादिषु हतपातकविवशम् । मृड मामव सुकृतीभव शिवया सह कृपया शिवशङ्कर शिवशङ्कर हर मे हर दुरितम् ॥ ९॥ कलिनाशन गरलाशन कमलासनविनुत कमलापतिनयनार्चितकरुणाकृतिचरण । करुणाकर मुनिसेवित भवसागरहरण शिवशङ्कर शिवशङ्कर हर मे हर दुरितम् ॥ १०॥ विजितेन्द्रिय विबुधार्चित विमलाम्बुजचरण भवनाशन भयनाशनभजिताङ्गितहृदय । फणिभूषण मुनिवेषण मदनान्तक शरणं शिवशङ्कर शिवशङ्कर हर मे हर दुरितम् ॥ ११॥ त्रिपुरान्तक त्रिदशेश्वर त्रिगुणात्मक शम्भो वृषवाहन विषदूषण पतितोद्धर शरणम् । कनकासन कनकाम्बर कलिनाशन शरणं शिवशङ्कर शिवशङ्कर हर मे हर दुरितम् ॥ १२॥ ॥ इति श्रीशिवशङ्करस्तोत्रम् अथवा यमभयनिवारणस्तोत्रम् ॥ There are four more verses found in kShamApana stotram in Shri Vatuk Puja Vidhi book of Paramananda Research Institute. The verses are qualitatively similar and are added here for completion. अतिदुर्नय चटुलेन्द्रिय रिपु सञ्चय दलिते पवि कर्कश कटु जल्पित खलगर्हण चलिते । शिवया सह ममचेतसि शशिशेखर निवसन् शिवशङ्कर शिवशङ्कर हर मे हर दुरितम् ॥ १३॥ भवभञ्जन सुररञ्जन खलवञ्चन पुरहन् दनुजान्तक मदनान्तक रविजान्तक भगवन् । गिरिजावर करुणाकर परमेश्वर भयहन् शिवशङ्कर शिवशङ्कर हर मे हर दुरितम् ॥ १४॥ शक्रशासन क्रतुशासन चतुराश्रम विषये कलि विग्रहभवदुर्ग्रहरिपुदुर्बल समये । द्विज क्षत्रिय वनिताशिशुदर कम्पित हृदये शिवशङ्कर शिवशङ्कर हर मे हर दुरितम् ॥ १५॥ भव सम्भव विविधामय परिपीडित वपुषं दयितात्मज ममताभर कलुषीकृत हृदयम् । कुरु मां निज चरणार्चन निरतं भव सततम् शिवशङ्कर शिवशङ्कर हर मे हर दुरितम् ॥ १६॥ The verses 1, 13-16 are termed as shivachAmarastutiH in some documents. Some prints call this shivAShTakam as well. Encoded and proofread by Sunder Hattangadi
% Text title            : shivashankarastotra
% File name             : shivashankarastotra.itx
% itxtitle              : shivashaNkarastotraM athavA yamabhayanivAraNastotram athavA shivachAmarastutiH
% engtitle              : shivashankara or yamabhaya nivAraNa stotram or shivachAmarastutiH
% Category              : shiva, stotra
% Location              : doc_shiva
% Sublocation           : shiva
% Texttype              : stotra
% Language              : Sanskrit
% Subject               : philosophy/hinduism/religion
% Transliterated by     : Sunder Hattangadi
% Proofread by          : Sunder Hattangadi
% Description-comments  : Verses 1, 13-16 are considered shivachAmarastutiH
% Indexextra            : (Scan, shivachAmarastutiH))
% Latest update         : December 31, 2019
% Send corrections to   : (sanskrit at cheerful dot c om)
% Site access           : https://sanskritdocuments.org

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